"सबसे बड़ा किसान आंदोलन???"

  • राजस्थान में ब्रिटिश हुकूमत का सबसे अधिक नुकसान वहाँ के किसानों  को हो रहा था।
  • राजस्थान के किसानों पर ब्रिटिश हुकूमत द्वारा तरह-तरह के कर एवं लगान थोपे जा रहे थे ।
  • राजस्थान की मेवाड़ रियासत के बिजौलिया नामक स्थान के किसानों ने बढ़ते कर एवं लगान के खिलाफ आंदोलन की मुहिम छेड़ दी।
  • मेवाड़ राज्य की कुल कृषि भूमि का 87% भाग जागीरदारों के नियंत्रण में था जबकि 13% भाग सीधे महाराणा के नियंत्रण में था।
  • किसान आंदोलन का प्रारंभ मेवाड़ राज्य के बिजोलिया से माना जा सकता है।
  • आज बात करेंगे भारत के सबसे बड़े किसान आंदोलन की ।

● बिजोलिया का इतिहास एवं भौगोलिक स्थिति: 

  • भारत में एक संगठित किसान आंदोलन की शुरुवात का श्रेय मेवाड़ के बिजोलिया क्षेत्र को जाता है ।
  • बिजोलिया मेवाड़ का  प्रथम श्रेणी का ठिकाना था ।
  • इस  ठिकाने का संस्थापक अशोक परमार था जो अपने मूल स्थान  जगनेर(भरतपुर ) से राणा सांगा की सेवा में चित्तोड़ आगया था।
  • वह राणा सांगा की और से 1527 ई  में  खानवा के युद्ध में लड़ा था राणा जी ने उसे  उपरमाल  की जागीर प्रदान की।
  • बिजोलिया उक्त जागीर का सदर मुकाम था इस ठिकाने का क्षेत्रफल  100 वर्ग मील था जो 25 गांवो में संगठित था। 
  • बिजोलिया के राव सवाई कृष्णसिंह के समय बिजोलिया की जनता से 84 प्रकार की लागते ली जाती थी।

● बिजोलिया किसान आंदोलन का प्रारंभ :

  • सन 1897 में उपरमाल के धाकड़ जाति के  किसान "गंगाराम धाकड़ " के मृत्यु भोज के अवसर पर "गिरधारीपुरा नामक ग्राम " में एकत्रित हुए। 
  • इस मोके पर किसानो ने निर्णय किया कि किसानो की और  से नानाजी पटेल और ठाकरी जी पटेल  उदयपुर जाकर ठिकाने के जुल्मो के विरुद्ध महाराणा से शिकायत करे।
  • महाराणा ने दोनों पटेलों की बात सुन छ: माह बाद, महाराणा ने  एक अधिकारी को शिकायतों की जांच के लिए बिजोलिया भेजा।
  • अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में किसानो की शिकायतों सही बताया, परन्तु राज्य सरकार ने उस पर कोई कार्यवाही नहीं की।
  • इससे राव कृष्णसिंह के होंसले बढ़ गए और नानाजी एवं ठाकरी जी को ऊपरमाल से निर्वासित कर दिया 1903 में कृष्णसिंह ने चवरी कर लगाया,इस कर  के अनुसार पट्टे के प्रत्येक व्यक्ति को अपनी लड़की की शादी  अवसर पर 5 रूपए चवँरी कर ठिकाने को देना पड़ेगा। 
  • विरोध स्वरुप किसानो ने  लड़कियों की शादी करना  स्थगित कर दिया, परन्तु राव के कान पर जु तक नहीं रेंगी। 
  • किसानो ने निश्चय किया की जब तक चवरी कर समाप्त नहीं हो जाता तब तक वे ठिकाने की भूमि पर खेती  करेंगे। 
  • अंतत: ठाकुर ने चंवरी कर माफ़ कर दिया एवं लगान उपज के आधे स्थान पर 2 /5 ही लेने की घोषणा की उस समय बिना किसी सोशल मीडिया के किसानो की यह एक अप्रत्यशित विजय थी।


● राव कृष्णसिंह की मृत्यु के बाद :

  • 1906 में राव कृष्णसिंह की मृत्यु हो गयी।
  • उसके स्थान पर पृथ्वीसिंह बिजोलिया का स्वामी बना।
  • मेवाड़ राज्य के नियमो  अनुसार पृथ्वीसिंह को उत्तराधिकारी स्वीकार करने से पूर्व उसे तलवार बंधाई(उतराधिकार कर ) के रूप में महाराणा को एक बड़ी राशि देनी थी।
  • पृथ्वीसिंह ने यह भार जनता पर डाल दिया तथा नया कर तलवार बंदी लगा दिया। 
  • किसानो ने साधु सीतारामदास,फतहकरण चारण और ब्रह्मदेव के नेतृत्व में राव की कार्यवाही का विरोध किया।
  • 1913 में ठिकाने को भूमि कर नहीं दिया , ठाकुर ने कही किसानो को जेल में भिजवा दिया। 
  • इसी समय पृथ्वीसिंह की मृत्यु हो जाती है। 


● बिजोलिया को विजय सिंह पथिक का नेतृत्व:

  • पृथ्वीसिंह की मृत्यु के बाद मेवाड़ सरकार ने कोट ऑफ़ वार्डस कायम कर दी। 
  • 1916 में बिजोलिया किसान आंदोलन में  विजय सिंह पथिक(भूपसिंह ) ने  प्रवेश किया।
  • पथिक जी 1907 में प्रसिद्ध क्रांतिकारी शचीन्द्र सान्याल और रास बिहारी बोस के सम्पर्क में आए।
  • बोस ने उन्हे राजस्थान में क्रांति का आयोजन करने के लिए खरवा ठाकुर गोपाल सिंह के पास भेजा। 
  • राजस्थान जाने पर उन्होंने अपनी पहचान छुपा ली ओर भूपसिंह से अपना नाम बदलकर विजय सिंह पथिक रख लिया एवं जीवनभर इसी नाम से उन्हे जाना गया। 
  • पथिक जी सर्वप्रथम हरिभाई किंकर की विद्या प्रचारणी सभा से जुड़े। 

  • विद्या प्रचारणी सभा के वार्षिक उत्सव पर साधु सीतारामदास चित्तोड़ आये जहाँ उनकी मुलाकात पथिक जी से हुई ओर उन्होंने पथिक जी को बिजोलिया आंदोलन का नेतृत्व सँभालने के लिए आमंत्रित किया। 

  • पथिक जी ने उनका आमंत्रण स्वीकार कर लिया और बिजोलिया को अपनी कर्मभूमि बना लिया।
  • 1917 में पथिक जी ने हरियाली आमवस्या को बरिसाल गांव में उपरमाल पंच बोर्ड की स्थापना की तथा मन्ना भाई पटेल को इस पंचायत को सरपंच बनाया।
  • किसानो से प्रथम विश्व युद्ध के लिए चंदे के नाम पर धन वसूला जा रहा था पथिक जी ने अब युद्ध  चंदे के विरोध में आवाज बुलंद की।
  • माणिक्यलाल वर्मा जी ने पथिक जी से प्रभावित होकर ठिकाने की सेवा से इस्तीफा दे दिया था।
  • वर्मा जी द्वारा रचित पंछीडा गीत इस आंदोलन में खूब गाया गया। 
  • अब पथिक जी ने बिजोलिया किसान आंदोलन के देशभर में प्रचार की सुव्यवस्था की और बिजोलिया आंदोलन की सुचना कानपूर से निकलने वाले प्रताप के सम्पादक श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के पास भेजी एवं विद्यार्थी जी ने आश्वासन दिया की में अंत तक इस आंदोलन का समर्थन करुँगा।
  • विद्याथी जी ने इस आंदोलन के समर्थन में एक क्रांतिकारी लेखो की शृंखला प्रकाशित की और बिजोलिया किसान आंदोलन एक क्षेत्रीय आंदोलन से राष्ट्रीय आंदोलन बन गया।
  • प्रताप में लेख छपने के बाद बिजोलिया के किसानो पर अत्याचार बढ़े तो पथिक जी ने मेवाड़ सरकार और भारत सरकार को ठिकाने पर हो रहे अत्याचारो को स्मृति पत्रों के माध्यम से अवगत कराया। 
  • अप्रैल 1919 में न्यायमूर्ति बिंदुलाला भट्टाचार्य की अध्यक्षता में एक जाँच आयोग नियुक्त किया गया।
  • आयोग ने सिफारिश की कि किसान कार्यकर्ताओ को  जेल से छोड़ दिया जाएं ,अनावश्यक लागतो को समाप्त किया जाए और बेगार प्रथा समाप्त की जाये।
  • मेवाड़ सरकार ने आयोग की एक नहीं सुनी और 200 प्रमुख किसानो को जेल में डाल दिया। 

● पथिक जी का वर्धा जाना (1919 ) :

  • पथिक जी महात्मा गाँधी से मिलने के लिए 1919 में बम्बई गए। 
  • गाँधी जी ने किसानो की शिकायतों को दूर करने के लिए महाराणा फतेहसिंह जी को पत्र भी लिखा पर कोई फल नहीं निकला। 
  • पथिक जी की बम्बई यात्रा में ये तय हुआ कि पथिक जी के सम्पादकत्वा में वर्धा से राजस्थान केसरी नामक पत्र निकाला जाये ,1919 में इसका प्रकाशन प्रारंभ किया गया ।
  • इस बीच बिजोलिया आंदोलन का संचालन वर्मा जी ने किया। 
  • पथिक जी ने राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की जिसे 1920 में अजमेर स्थानांतरित किया पथिक जी ने अब अजमेर को अपनी प्रवृतिया केंद्र बनाया और वहां से उन्होंने एक नया पत्र नवीन राजस्थान प्रकाशित किया। 

                                      (सोर्स:विकिपीडिया) विजय सिंह पथिक जी

● राजस्थान सेवा संघ के नेतृत्व में आंदोलन :

  • 8 अक्टुम्बर 1921 को बिना कुंता किसानो  फसल काट ली और अब बिजोलिया आंदोलन का असर मेवाड़ के अन्य किसानो तथा सीमावर्ती राज्यों पर पड़ने लगा। 
  • भारत सरकार के राजपुताना स्थित एजेंट होलैंड स्वयं 4 फ़रवरी 1922 को सदल-बद बिजोलिया पहुंचे।
  • किसानो का प्रतिनिधित्व राजस्थान सेवा संघ और आंदोलन नेतृत्व वर्मा जी ने किया। 
  • हॉलैंड के प्रयत्नों से स्थितियां सामान्य हो गई परन्तु दुर्भाग्य से ये स्थितियां फिर बिगड़ गई। 
  • 1923 बिजोलिया के राव का विवाह हुआ ,इस विवाह में ठिकाना किसानो से बेगार लेना चाहता था। 
  • 1926 में ठिकाने में बंदोबस्त हुआ, उसमे लगान की दरे ऊँची नियत की गई।
  • 1927 में मेवाड़ के बंदोबस्त अधिकारी श्री ट्रैंच बिजोलिया आये,ट्रैंच ने किसी प्रकार पंचायत और ठिकाने में समझौता तो करा दिया,थोड़े समय बाद ही वर्मा जी  जेल में डाल दिया।
  • लगान की ऊँची दरे निर्धारित करने के विरोध में किसानो ने मई, 1927 में अपनी-अपनी जमीनों से इस्तीफा दे दिये। 
  • ठिकाने ने इन जमीनों को नीलाम किया, दुर्भाग्य से जमीनों को उठाने वाले भी मिल गए,किसान मात खा गए। 

                                                   (सोर्स: विकिपीडिया) माणिक्यलाल वर्मा जी

● जमनालाल बजाज का नेतृत्व :

  • पथिक जी, वर्मा जी एवं रामनारायण चौधरी के बीच गहरा मतभेद हो गया, परिणाम यह हुआ की राजस्थान सेवा संघ छिन्न भिन्न हो गया। 
  • अब जमनालाल बजाज जी जिन्होंने इस आंदोलन को आर्थिक सहायता दी उन्हे इस आंदोलन का सर्वेसर्वा बना दिया गया। 
  • 1931 में करीब चार हज़ार किसानो ने अपनी इस्तीफा शुदा जमीन पर हल चलाना प्रारम्भ कर दिया।
  • राज्य ने किसानो के सत्याग्रह का मुकाबला करने के लिए सेना एवं पुलिस को ठिकाने में नियुक्त किया। 
  • जमनालाल बजाज जी उदयपुर पहुंचे एवं महाराणा और सर सुखदेव प्रसाद  से मुलाकात की। 
  • जमनालाल जी के प्रयास रंग लाये और महाराणा द्वारा आश्वासन दिया गया की 1922 के समझौते का पालन किया जाएगा।
  • मेवाड़ सरकार ने करीब डेढ़ वर्ष बाद वर्मा जी को भी रिहा कर दिया, लेकिन मेवाड़ से निर्वासित कर दिया।

                                                 (सोर्स:विकिपीडिया) सेठ जमनालाल जी बजाज

● वर्मा जी का आंदोलन को पुनः नेतृत्व 

  • बिजोलिया आंदोलन को पूर्ण सफलता 44 वर्ष बाद 1941  मिली , जब मेवाड़ के टी विजय राघवाचार्य  प्रधानमंत्री बने। 
  • राघवाचार्य जी के आदेश से तत्कालीन राजस्वमंत्री डॉ मोहन सिंह मेहता बिजोलिया गए और वर्मा जी और अन्य नेताओ से बातचीत कर किसानो की समस्याओ का समाधान करवाया। 
  • किसानो को अपनी जमीन वापस मिल गई और वर्मा जी के जीवन की ये सबसे बड़ी सफलता थी ।
  • देश का ये सबसे बड़ा और लम्बे समय तक चलने वाला आंदोलन था जिसने किसानो की आवाज़ को आजादी के बाद से लेकर वर्तमान तक बुलंद किया है। 
  • अहिंसात्मक होकर अपने हक़ को प्राप्त करना बिजोलिया किसान आंदोलन सिखाता है।

Comments

Post a Comment