एक महान शिक्षक जिन्होंने शपथ ली देश के द्वितीय राष्ट्रपति के रूप में

● एक शिक्षक जिन्होंने अपने देश के शिक्षकों को सम्मान दिलाने के लिए अपने जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने को कहा।
● एक शिक्षक जो महज़ 20 वर्ष की उम्र में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर बन गए।
● एक शिक्षक जिन्होंने अपने देश की संस्कृति को विदेशी यूनिवर्सिटी तक पहुँचाया।
● एक शिक्षक जिन्होंने राजनायिक की भूमिका निभाई।
● एक शिक्षक जिन्होंने उपराष्ट्रपति के पद की शपथ ली और देश के नेताओ को अनुशासन में रहने का पाठ पढ़ाया।
● एक शिक्षक जिन्होंने देश के द्वितीय राष्ट्रपति के पद पर अनेक चुन्नोतियो का सामना किया।
● हम बात करेंगे उस महान व्यक्तिव की " डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जिनका जीवन आज भी देश के प्रत्येक नागरिक को अनुशासन,आदर्श और परपम्परा की सीख देता है।


1.) डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म एवं शिक्षा-:
● श्री राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1888 को वर्तमान में तमिलनाडु के तिरुवल्लुर जिले में हुआ।
● उनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरासमियाह और माता का सीताम्मा था।
● वे एक गरीब ब्राह्मण परिवार में जन्मे और उनके पिता राजस्व में कार्य करते थे।
● राधाकृष्णन का बचपन संघर्षो में बीता पर मेधावी राधाकृष्णन सदैव अपनी रूचि शिक्षा के प्रति रखी।
● राधाकृष्णन की प्रारंभिक शिक्षा तिरुतनी जैसे धार्मिक स्थल पर हुई।
● 1896-1900 तक उनकी शिक्षा क्रिश्चयन  मिशनरी संस्था में हुई।
● उसके अगले 4 वर्ष उनकी शिक्षा मद्रास के वेल्लूर में हुई।
● इसके बाद उन्होंने मद्रास क्रिश्चयन कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की।
(फोटो सोर्स-: विकिपीडिया)

2.) विज्ञान की रूचि रखने वाला छात्र कैसे बना दर्शनशास्त्र का शिक्षाविद-:
● कहते है कि राधाकृष्णन की रूचि विज्ञान विषय में थी।
● एक बार उनके घर कोई दूर के रिश्तेदार आएं जो अपने साथ दर्शन विषय की कुछ किताबें लाएं थे।
● जब वह राधाकृष्णन के घर से गए तब दर्शन की एक किताब वही भूल गए थे।
● तब मेधावी राधाकृष्णन ने बिना वक़्त गवाएं उस किताब के अध्ययन का सोचा और महज़ 2 दिन में पूरी किताब पढ़ली।
● तब से उन्होंने विज्ञान विषय की जगह दर्शनशास्त्र विषय में अपनी रूचि दिखाना प्रारम्भ किया और मद्रास क्रिश्चयन कॉलेज में दाखिला लेकर दर्शन की शिक्षा प्राप्त की।
● कहते है तभी उन्होंने पश्चिमी संस्कृति के सभी ग्रन्थों का अध्ययन करने के साथ ही हिन्दू धर्म के भी सभी ग्रंथो का अध्ययन किया।
● वे क्रिश्चयन संस्था में अध्ययन करने के बाद भी अपनी संस्कृति के प्रति सदैव समर्पित रहे।
● 1926 आई उनकी किताब " the hindu view of life"  बहुत चर्चित रही।

3.) शिक्षक बनने का सफर का प्रारंभ-:
● 1909 में राधाकृष्णन का शिक्षक बनने का सफर चालू हुआ उन्होंने मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर पद से दर्शनशास्त्र पढ़ाना प्रारंभ किया।
● उस समय शिक्षण का प्रशिक्षण लेना आवश्यक था इसलिए उन्होंने 1910 में शिक्षण का प्रशिक्षण लेना प्रारंभ किया।
● उनका प्रारंभिक वेतन 37 रुपये था।
● प्रशिक्षण लेने के दौरान प्रोफ़ेसर जब उनसे कक्षा में दर्शनशास्त्र के किसी भी शीर्षक पर चर्चा करते तो उन्हे सुनते रह जाते है।
● उनके दर्शनशास्त्र के ज्ञान के चलते उन्हे दर्शनशास्त्र पढ़ाने का मौका मिला।
● उनके कक्षा व्याख्यानों को जब कोई भी दर्शनशास्त्र का अभ्यर्थी सुनता तो उनके प्रभावशाली शिक्षण शैली का कायल हो जाता।
● 1921 में जब वो मैसूर विश्वविद्यालय छोड़ कलकत्ता विश्वविद्यालय ज्वाइन करने जा रहे थे तो विश्वविद्यालय के परिसर के बाहर एक बग्गी सजाई जा रही थी।
● जब राधाकृष्णन बाहर आएं और बग्गी को देखा तो मुस्कुराये और उनके विद्यार्थी घोड़ो की जगह खुद बग्गी को खींच कर मैसूर रेलवे स्टेशन ले गए पुरे शहर ने राधाकृष्णन को विदाई दी।
● ये शायद पहला ही मौका होगा जब किसी शिक्षक को इतना प्यार दुलार मिला होगा।
● साल 1926 में जब वे अमेरिका की हॉवर्ड यूनिवरसिटी में एक कॉन्फ्रेंस में गये तो उन्होंने भारतीय दर्शनशास्त्र को पश्चिम की शैली में ऐसा बताया कि अमेरिका शिकागो के स्वामी जी के भाषण की याद दिला दी।
● अगले दिन अखबारों की सुर्खियों में राधाकृष्णन ही छाए रहे।
● साल 1937 में साहित्य के लिए उनका नाम नोबेल पुरस्कार के लिए भी नामित हुआ।
●1909 से 1939 तक उन्होंने देश-विदेश के अलग अलग विश्वविद्यालय में पढ़ाते रहे।
● 1939 में काशी विश्वविद्यालय के संरक्षक मदन मोहन मालवीय जी के न्यौते पर BHU का चांसलर बनना स्वीकार किया।
● यही से  प्रोफ़ेसर राधाकृष्णन की राजनीतिक पारी का प्रारंभ हुआ।

4.) राजनायिक की भूमिका से उपराष्ट्रपति-:

● जब प्रोफ़ेसर साहब BHU के चांसलर बने तो पंडित नेहरू के संपर्क में आए।
● राष्ट्रीय आंदोलनों का हिस्सा कभी वो सीधे रूप में तो नही रहे पर एक बार कलकत्ता में हुए कांग्रेस अधिवेशन में उनकी मुलाकात पंडित नेहरू से हुई।
● तब से वह देश की आजादी के विषय में प्रत्यक्ष रूप से अपनी राय जरूर दिया करते थे।
● नेहरू जी अपनी बिटिया इंदु के अध्यापक श्री राधाकृष्णन के अनुभवों और उनकी व्याख्यानों की चर्चाओं को पहले समझ चुके थे।
● जब देश में संविधान सभा का निर्माण हुआ तो राधाकृष्णन भी उस सभा के सदस्य बने।
● नेहरू जी ने 1949 में राधाकृष्णन को संविधान सभा से इस्तीफा दिलाया और रूस में भारत का राजदूत बनाकर भेजा।
● नेहरू जी के इस फैसले की आलोचना खूब हुई की एक गैर राजनीतिक व्यक्ति को राजदूत बनाकर भेजना सही नही।
● लेकिन राधाकृष्णन प्रत्येक चुनोती को स्वीकार भी करते और सफल भी होते और उनकी इस आदत ने उन्हे एक सफल राजनायिक भी बनाया।
● तब रूस के राष्ट्राध्यक्ष थे "स्टालिन"।
● राधाकृष्णन जब रूस के राजदूत बनकर रूस के गए तो पहले 6 माह स्टालिन ने उन्हे मिलने का समय ही नही दिया।
● स्टालिन को जब राधाकृष्णन के दर्शनशास्त्र के ज्ञान के बारे में पता चला तो उन्होंने राधाकृष्णन को मिलने का समय दिया रात 9 बजे का क्योंकि उन्हे पता था कि ये भारतीय राजनयिक 10 बजे सो जाते है। बाकि देशों के राजदूतों से वो रात 12 बजे मिलते थे।
● राधाकृष्णन जब उनसे मिलने पहुँचे तो उन्हे केवल 5 मिनट का समय दिया गया था लेकिन स्टालिन उनसे 3 घंटे तक चर्चा करते रहे और उनके विचारों से बहुत ज्यादा प्रभावित हुए।
● कहते है कि राधाकृष्णन में से कभी शिक्षक बाहर नही निकला था स्टालिन से मुलाकात के वक़्त उन्होंने स्टालिन के बालों सहला दिया जैसे वो कभी किसी अपनी दर्शन की कक्षा में अपने स्टूडेंट के सहला देते थे।
(फोटो सोर्स-: विकिपीडिया)


● वर्ष 1952 में वो उन्होंने देश के पहले उप राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली।
● कहते है कि तब भी वह सभापति के रूप पक्ष हो या विपक्ष किसी भी नेता को अनुशासन सीखाना हो तो बिल्कुल दर्शन की क्लास में बैठे अपने स्टूडेंट की तरह ही समझाया करते थे।
● उपराष्ट्रपति की उनकी चीन यात्रा भी खूब याद की जाती है।
● तब  चीन के राष्ट्राध्यक्ष माओ थे ये वही माओ थे जो कहा करते थे कि सत्ता बन्दुक की नोक पर हासिल की जाती है।
● कहते है कि एक मुलाकात के दौरान उन्होंने माओ के गाल को पकड़ कर बच्चे की तरह सहला दिया था ये उनका शिक्षक रूप ही था जो दुनिया के ताकतवर नेताओ को आसानी से प्रभावित कर देता था।
(फोटो सोर्स-: विकिपीडिया)
5.) राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन-:
● 1954 में अपने दर्शनशास्त्र के ज्ञान के चलते सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
● 1962 से ही उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाना प्रारंभ किया।
● वर्ष 1962 में वे देश के द्वितीय राष्ट्रपति बने ये शायद उनके लिए बहुत चुनोती वाला समय था।
● दो प्रधानमंत्री की मृत्यु पहले नेहरू जी और फिर शास्त्री का चले जाना।
● दो युद्ध भी इनके ही कार्यकाल में हुए पहले 1962 में चीन से और 1965 में पाकिस्तान से युद्ध हुआ।
● उन्होंने दो कार्यवाहक प्रधानमंत्री के साथ भी काम किया।
● ये देश के ऐसे राष्ट्रपति थे जिन्होंने सभी दया याचिकाओं को स्वीकार किया।
● वे कहते थे कि जब तक अपराध जगन्य न हो तब तक फाँसी की सजा नही देनी चाहिए।
● वे फाँसी की सजा को उम्रकैद में बदल देते थे।
● लेकिन शायद उनके शिक्षक रूप ने उन्हे प्रत्येक चुन्नोति का सामना आसानी से करवा दिया।

आजादी की पूर्व संध्या पर 14 अगस्त 1947 के एक भाषण में उन्होंने एक श्लोक कहा था तब केवल तीन ही लोगो ने भाषण दिया जिसमें राधाकृष्णन भी थे। श्लोक ये था कि

"सर्वभुता दिशा मात्मनम सर्वभूतानी कात्यानी 
सपश्चम आत्म्यानीवै स्वराज्यम अभिगछच्ती"
                        अर्थात्
स्वराज्य एक ऐसे सहनशील प्रकृति का विकास है।
जो अपने मानव भाइयो में ईश्वर का रूप देखता है
असहनशीलता हमारे विकास की सबसे बड़ी दुश्मन है
एक दूसरे के विचारो के प्रति सहनशीलता
एकमात्र स्वीकार्य रास्ता है।



Comments

Post a Comment