स्वयंसेवक मोदी से प्रधानमंत्री मोदी बनने का सफर अध्याय प्रथम

● "नरेंद्र दामोदरदास मोदी" आरएसएस का एक नोजवान स्वयंसेवक जिन्होंने राजनीति का प्रथम पाठ वडनगर(गुजरात) में लगी शाखा से सीखा।
● नरेंद्र जो बिना बताएं अपने घर से निकले और छोटी उम्र में कुछ समय हिमायल की गोद में तपस्या करने बाद लौट आएं।
● नरेंद्र जिन्होंने अपने बचपन में पिता के चाय के थैले पर काम कर जीवन के संघर्षो का सामना किया।
● नरेंद्र जो संघ के स्वयंसेवक से संघ के प्रचारक बने।
● नरेंद्र जिन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (गुजरात) के संगठन का कार्य संभाला।
● नरेंद्र जो संघ के कहने पर बीजेपी के गुजरात के संगठन मंत्री बने।
● नरेंद्र जो राजनैतिक प्रतिद्वंधियो के चलते बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव बने और 6 वर्ष केंद्र की राजनीति में रहे।
● नरेंद्र जिनकी गुजरात पुनः वापसी ने उन्हे "सीएम मोदी" बनाया।
● नरेंद्र जिनके "गुजरात मॉडल", संगठन कुशलता,राजनैतिक सोच,प्रखर वक्ता, दूर दृष्टि,चातुर्यता, हिन्दू हृदय सम्राट,जनता से सीधे सवांद और देश के प्रति उनके अपार प्रेम और श्रद्धा ने उन्हे "सीएम मोदी" से "पीएम मोदी" बना दिया।
● आज बात करेंगे देश के वर्तमान प्रधानमंत्री "श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी" की।

1.) स्वयंसेवक मोदी बनने की कहानी-:

● 17 सितम्बर 1950 को वडनगर (गुजरात) में श्री नरेंद्र मोदी का जन्म हुआ।
● वर्ष 1949 में राष्ट्र स्वयं सेवक संघ से प्रतिबन्ध हटा दिया गया। ये प्रतिबन्ध गांधी जी की हत्या के बाद लगाया गया था।
● तब संघ प्रमुख के रूप में कार्य कर रहे थे "माधवराज सदाशिवराव गोलकर" और अब वे चाहते थे कि संघ को भारत के दूसरे राज्यो तक भी पहुँचाया जाएं।
● महाराष्ट्र राज्य के संघ के कार्यकर्ताओं को भारत के दूसरे राज्यो में आरएसएस के प्रचार के लिए भेजा।
● तब गुजरात प्रान्त के प्रचारक के तौर पर लक्ष्मण राव इनामदार को भेजा। कानून की डिग्री प्राप्त लक्ष्मण राव जी जब गुजरात गए तो संघ के स्वयंसेवक उन्हे वकील बाबू कहने लग गए थे।
● तब वडनगर के एक अध्यापक बाबू भाई नायक संघ की शाखा लगाया करते थे वे संघ से 1944 से जुड़े थे। 
● जब प्रतिबन्ध हटा तो पुनः शाखा लगाना आरंभ किया।
● एक बार वकील बाबू वडनगर बाल स्वयंसेवको को संबोधित करने और संघ के प्रति निष्ठा की शपथ दिलाने पहुँचे।
● तब शपथ लेने में एक बाल स्वयंसेवक दूसरी पंक्ति में खड़ा था और वो बाल सेवक थे श्री नरेंद्र मोदी।
● 1958 में वो पहली बार ही था जब मोदी का संघ से जुड़ाव हुआ और उस दिन मोदी ने शपथ ऐसी ली की। उसके बाद 4 बार मुख्यमंत्री और 2 बार प्रधानमंत्री की शपथ ले ली है।
● मोदी में शायद नेतृत्व क्षमता के गुण तो बचपन से थे पर राष्ट्र स्वयंसेवक संघ ने उन गुणों को निखारने का काम किया।
              (फोटो सोर्स-: विकिपीडिया)

2.) छोटी उम्र में घर त्यागकर सन्यासी जीवन-:

● माँ हीरा बेन ने 6 बच्चो को जन्म दिया जिसमें नरेंद्र तीसरे पुत्र थे।
● नरेंद्र की सगाई मात्र 13 वर्ष की आयु में पड़ोस के गाँव में रहने वाली जसोदा बेन से हुई।
● नरेंद्र की शादी हुई तब वह मात्र 17 वर्ष के थे।
● नरेंद्र मोदी की जीवनी लिखने वाले लेखक बताते है कि नरेंद्र और जसोदा बेन शादी के बाद साथ नही रहे।
● उनका कहना है कि नरेंद्र कभी शादी के लिए तैयार नही थे। वे अपने जीवन को अकेले ही बीताना चाहते थे।
● नरेंद्र का मानना था कि एक अकेला व्यक्ति भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ सकता है क्योंकि उसे परिवार की चिंता नही रहती।
● नरेंद्र ने शादी के बाद घर त्यागने का निर्णय लिया। कुछ लोग ये भी कहते है कि नरेंद्र ने जब घर छोड़ा तो जसोदा बेन को अपनी पढ़ाई निरन्तर करने की सलाह दी।
● नरेंद्र घर त्यागकर देश के विभिन्न धार्मिक स्थलों का अध्ययन किया। कुछ लोग जो नरेंद्र को करीब से जानते है वो कहते है कि घर त्यागकर उन्होंने 2 वर्ष तक हिमालय जाकर सन्यासी जीवन व्यतीत किया।
● अपने सन्यासी जीवन का समय पूर्ण कर जब नरेंद्र पुनः घर वापस लौटे तो सभी हैरान रह गए।
● नरेन्द्र ने घर आकर कहा कि मेरा सन्यास अब खत्म हुआ मैं  अहमदाबाद चाचा की दुकान पर काम करूँगा और पैसे कमाना चाहता हूं।
                (फोटो सोर्स-: विकिपीडिया)

3.) संघ कार्यालय में जाकर रहना और इंदिऱा सरकार का आपातकाल का दौर-:

● नरेंद्र ने कुछ समय चाचा की कैंटीन में काम किया और फिर स्वयं का चाय का काम चालू कर दिया।
● नरेंद्र ने अपने चाय के व्यापार के लिए एक साइकिल खरीदी और जगह का चयन किया अहमदाबाद का "गीता मंदिर" जहाँ संघ के स्वयंसेवको का आना-जाना लगा रहता था।
● शाखा खत्म होती तो स्वयंसेवक नरेंद्र के ठीये पर रुक जाते क्योकि नरेंद्र का जुड़ाव भी संघ से रहा था।
● तब गुजरात के संघ के प्रान्त प्रचारक लक्ष्मण राव इनामदार को पता चला।
● कुछ महीनो बाद प्रान्त प्रचारक ने नरेन्द्र को कहा कि तुम संघ कार्यालय केशव भवन आकर रहो।
● नरेंद्र ने इनामदार साहब के न्योते को स्वीकार कर लिया। उनकी जीवनी लिखने वाले कामद ने लिखा है कि उस वक़्त संघ कार्यालय में 12 लोग रहते थे जिसकी जिम्मेदारी नरेंद्र को दी गई।
● मोदी सभी का खाना बनाते, केशव भवन की सफाई करते और अपने एवं इनामदार साहब के कपडे धोते और दफ्तरी कार्यो में भी हाथ बंटाते थे।
● नरेंद्र किसी भी कार्यो को इतनी लग्न से करते कि केशव भवन में सभी का दिल जीत लिया।
● नरेंद्र बचपन से ही एक प्रखर वक्ता थे और एक दिन दफ्तरी कार्यो को संभालते-संभालते नरेंद्र संगठन सँभालने लग गए।
● आपातकाल के दौरान नरेंद्र के कार्य कौशल ने सबको पहचाना।
● 1974 में गुजरात विधानसभा चुनाव हुए विपक्षी दलों का संयुक्त मोर्चा बना और गुजरात के मुख्यमंत्री बने "बाबू भाई पटेल" और फिर चालू हुआ इमरजेंसी का दौर जिससे सभी राज्य सरकारों ने तत्कालीन इंदिरा सरकार के सामने घुटने टेक दिए।
● तब इंदिरा सरकार के विरोधियो की शरण स्थल बना "गुजरात"।
● नरेंद्र तब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संगठन के कार्यो को देख रहे थे।
● नरेंद्र को आपातकाल के दौरान जिम्मेदारी मिली कि इंदिरा सरकार के खिलाफ जो पर्चे अलग अलग भाषाओं में छपते उन्हे दूसरे राज्यो के भूमिगत होकर कार्य कर रहे कार्यकर्ताओ तक पहुचाना।
● नरेंद्र ने ये कार्य बड़ी ही समझदारी से किया और इस दौरान उन्होंने सरदार का भेष बनाया जिससे उन्हे कोई पहचान नही पाएं।
● तब के सभी बड़े नेताओं की गिरफ्तारी हो चुकी थी पर नरेंद्र की कार्य कुशलता की खूब प्रशंसा हुई क्योंकि आपातकाल के दौरान उन्हे कोई गिरफ्तार नही कर पाया।
● जब आपातकाल हटा तो नरेंद्र को संघ में बड़ी जिम्मेदारी मिली,संघ और दूसरे संगठनों के बीच समन्वय का कार्य अब नरेंद्र को दिया गया।
● नरेंद्र की इस नई जिम्मेदारी ने उन्हे सीधे तौर पर राजनीति के निकट ला दिया।

4.) भारतीय जनता पार्टी में नरेंद्र की भूमिका-:

● 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई।
● गुजरात में आरक्षण विरोधी आंदोलन अपने चरम पर थे और तब गुजरात में कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी।
● भारतीय जनता पार्टी तब के लोकसभा चुनावों में केवल 2 सीट पर ही जीत पाई।
● बीजेपी के परामर्श दाता संघ भी पार्टी को कुछ नया करने के दिशा-निर्देश दे रहा था।
● गुजरात में तब बीजेपी के दो बड़े नेता केशूभाई पटेल और शंकर सिंह बाघेला थे।
● लोकसभा चुनावों में केवल 2 सीट मिलने के बाद संघ बीजेपी में कुछ नए चेहरों को जगह दे रहा था जिससे बीजेपी अपनी विचारधारा को लोगो तक पहुँचा सके।
● गुजरात में भी संघ ने अपने प्रचारक श्री नरेन्द्र मोदी को बीजेपी का संगठन मंत्री बनाया और नरेंद्र को आदेश दिए की अपने प्रदेश शीर्ष नेताओं की जड़ो को प्रदेश में मजबूत करो।
● इसके लिए नरेंद्र ने यात्राओं का प्रारंभ करवाया और एक कुशल संगठनकर्ता होने का परिचय दिया।
● नरेंद्र ने पहले न्याय यात्रा और 1989 के लोकसभा चुनाव से पहले लोक शक्ति रथ यात्रा का प्रस्ताव दिया। इस यात्रा को केशुभाई और बाघेला ने नेतृत्व प्रदान किया।
● यात्राओं का नतीजा ये निकला की गुजरात में बीजेपी को 12 लोकसभा सीट मिली।
● इसके बाद तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक एक रथ यात्रा निकाली जिसकी जिम्मेदारी गुजरात से ठाणे(मुंबई) तक नरेन्द्र को दी गई और इस दौरान कोई साम्प्रदायिक घटना घटित नही हुई। 
● इसके बाद 1992 में कश्मीर में अलगावादी आंदोलन अपने चरम पर थे। भारतीय जनता पार्टी ने निर्णय लिया की वो कन्याकुमारी से कश्मीर तक एक एकता यात्रा निकालेंगे। जिसका नेतृत्व करेगे तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष "मुरली मनोहर जोशी।"
● इस यात्रा का संयोजक नरेंद्र को बनाया गया पार्टी ने नरेन्द्र की सफल योजनाओं को परख लिया था।
● इस यात्रा के दौरान नरेन्द्र ने एक जोश भरा भाषण भी दिया था उन्होंने कहा था कि "हम बिना किसी बुलेट प्रूफ जैकेट के श्रीनगर के लाल चौक आएंगे अगर किसी में हिम्मत हो तो हमे लाल चौक पर तिरंगा फहराने से रोक के बताएं।"
● यात्रा सफल हुई लाल चौक पर तिरंगा फहराया गया और पार्टी अध्यक्ष पुनः हवाई अड्डे पहुँचे। वहाँ पत्रकारों से जब वो बात कर रहे थे "तब उन्होंने अपने बगल में खड़े नरेंद्र के लिए कहा इनसे मिलिए ये है नरेंद्र मोदी इस यात्रा का संपूर्ण दायित्व इन पर ही था ये गुजरात में पार्टी के संगठन मंत्री है।"
● ये राष्ट्रीय मीडिया के सामने देश के 15 वे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का पहला परिचय था।
● यात्रा के दौरान एक बार जोशी ने नरेंद्र को डाटा भी था कहते है मोदी रोज शाम यात्रा खत्म होने के बाद घूमने निकल जाते एक बार ये बात जोशी तक पहुँची तो नरेंद्र को जोशी ने कहा कि आप इस यात्रा के संयोजक है पर नियम तोड़ने अधिकार आपको नही,सभी के सामने आदर्श बनने की कोशिश करे।
● तब किसने सोचा होगा कि अपना पहला लोकसभा चुनाव 2014 में नरेन्द्र मुरली मनोहर जोशी की सीट वाराणसी से ही लड़ेंगे।

               (फोटो सोर्स-: विकिपीडिया)

5. शंकर सिंह बाघेला और मोदी के बीच टकरार और मोदी का केंद्र में कद बढ़ जाना-:

● यात्रा समाप्ति के दौरान नरेन्द्र गुजरात लौट आएं और अपने कार्य में लग गए।
● इस दौरान बाघेला से नरेन्द्र के टकराव की खबरे आने लगी।
● बीजेपी में संगठन मंत्री का कार्य संघ की बात बीजेपी तक और बीजेपी की संघ तक पहुचाना होता है।
● नरेंद्र का प्रदेश बीजेपी में बढ़ता कद बाघेला को रास नही आ रहा था।
● प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए और 182 में से बीजेपी को 121 सीट मिली।
● केशुभाई पटेल मुख्यमंत्री बने शंकर सिंह बाघेला को ये रास नही आया दोनों के बीच टकराव पैदा हो गया। बाघेला ने इस टकराव का कारण नरेन्द्र को बताया था।
● सरकार बनने के बाद 1 वर्ष बाद ही खजराहो काण्ड हो गया बाघेला ने सरकार को अल्पमत में लाने की सोच ली।
● अटल जी ने बाघेला से बात की तब वह तीन शर्त पर माने।
● पहली की केशुभाई सीएम पद से हटे,दूसरी की साथी विधायको को कैबिनेट में जगह मिले और तीसरी की नरेन्द्र मोदी को गुजरात से बाहर भेजा जाए।
● इस तीसरी शर्त के समर्थन में तब के गुजरात के सभी बड़े नेता थे क्योंकि नरेन्द्र का कद और पकड़ संगठन पर मजबूत होती दिख रही थी।
● अटल जी ने सभी शर्तो को मान लिया और नरेंद्र को गुजरात छोड़ केंद्र में बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव के रूप में तैनाती की गई। 
● नरेंद्र समझ गए की उनके प्रमोशन में भी उनका डिमोशन छिपा है पर वो प्रत्येक चुनोती को तैयार थे और दिल्ली से भी गुजरात का रास्ता कैसे जाता है बखूबी जानते थे।

● नरेंद्र महासचिव बनने के बाद कैसे रहे गुजरात की राजनीती के संपर्क में?
● अपने राजनैतिक विरोधियो का सामना कर नरेंद्र कैसे बने मुख्यमंत्री?
● नरेंद्र महासचिव से पीएम मोदी बनने की कहानी को जानने के लिए पढ़े हमारा अगला ब्लॉग।


Comments

Post a Comment