मैं हिंदी का या किसी अन्य भाषा का विद्वान होने का दावा नहीं करता । मेरा यह दावा नहीं है कि किसी भाषा में मेरा कुछ अंशदान हैकिंतु सामान्य व्यक्ति के समान मैं कह सकता हूं कि आज यह कहना संभव नहीं है कि भविष्य में हमारी उस भाषा का क्या रूप होगा जिसे आज हमने संघ के प्रशासन की भाषा स्वीकार किया है। हिंदी में विगत में कई-कई बार परिवर्तन हुए हैं और आज उसकी कई शैलियां हैं। पहले हमारा बहुत सा साहित्य ब्रज भाषा में लिखा गया था अब हिंदी में खड़ी बोली का प्रचलन है। मेरे विचार में देश की अन्य भाषाओं के संपर्क से उसका और भी विकास होगा। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि हिंदी देश की अन्य भाषाओं से अच्छी-अच्छी बातें ग्रहण करेगी तो उससे उन्नति होगी।
हमने अब देश का राजनीतिक एकीकरण कर लिया है। अब हम एक दूसरा जोड लगा रहे हैं जिससे हम सब एक सिरे से दूसरे सिरे तक एक हो जायेंगे और जो मतदान में हार भी गए हैं वे भी इस पर बुरा नहीं मानेंगे तथा उस कार्य में सहायता देंगे जो संविधान के कारण संघ को भाषा के विषय में अब करना पड़ेगा।
मैं दक्षिण भारत के विषय में एक शब्द कहना चाहता हं 1917 में जब महात्मा गांधी चंपारण में थे और मुझे उनके साथ कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हआ था तब उन्होंने दक्षिण में हिंदी प्रचार का कार्य आरंभ करने का विचार किया और उनके कहने पर स्वामी सत्यदेव और गांधी जी के प्रिय पुत्र देवदास गांधी ने वहां जाकर यह कार्य आरंभ किया। बाद में 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन के इंदौर अधिवेशन में इस प्रचार कार्य को सम्मेलन का मुख्य कार्य स्वीकार किया गया और वहां कार्य चलता रहा। मेरा सौभाग्य है कि मैं गत 32 वर्षों से इस कार्य से संबद्ध रहा हूं-- यद्यपि मैं यह घनिष्ठ संबंध का दावा नहीं कर सकता । मैं दक्षिण में एक सिरे से दूसरे सिरे को गया और मेरे हृदय में बहुत प्रसन्नता हुई कि दक्षिण के लोगों ने भाषा के संबंध में महात्मा गांधी के अनुरोध अनुसार कैसा अच्छा कार्य किया है । मैं जानता हूं कि उन्हें कितनी ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। किंतु उन्हें इस मामले में जो जोश था वह बहुत सराहनीय था।
मैंने कई बार पारितोषिक वितरण भी किया है और सदस्यों को यह सुनकर मनोरंजन होगा कि मैंने एक ही समय पर दो-दो पीढ़ियों को पारितोषिक दिए हैं, शायद तीन को ही दिए हों- अर्थात् दादा, पिता और पुत्र । हिंदी पढ़कर, परीक्षा पास करके एक ही वर्ष पारितोषिकों तथा प्रमाण-पत्रों के लिए आए थे। यह कार्य चलता रहा है और दक्षिण के लोगों ने इसे अपनाया हैआज मैं कह नहीं सकता कि वे इस हिंदी कार्य के लिए कितने लाख व्यय कर रहे हैं और मुझे याद नहीं है कि प्रतिवर्ष कितने परीक्षार्थी परीक्षाओं में बैठते हैं। इसका अर्थ यह है कि इस भाषा को दक्षिण के बहुत से लोगों ने अखिल भारतीय भाषा मान लिया है और इसमें उन्होंने जिस जोश का प्रदर्शन किया है उसके लिए उत्तर भारतीयों को बधाई देनी चाहिए, मान्यता देनी चाहिए और धन्यवाद देना चाहिए।
यदि आज उन्होंने किसी विशेष बात पर हठ किया है तो हमें याद रखना चाहिये कि आखिर यदि हिंदी को उन्हें स्वीकार करना है तो वे ही करेंगे।"
(फोटो सोर्स-: विकिपीडिया)
● 1937 में जब सी राजगोपालाचार्य मद्रास प्रेसीडेंसी में सर्वेसर्वा थे तो उन्होंने हिंदी सीखना अनिवार्य किया था।
● तब दक्षिण भारत के नेताओ ने इस विषय का खूब विरोध किया। तमिलनाडु के एक नेता करुणानिधि जो उस समय छात्र राजनीति का हिस्सा थे तब हिंदी भाषा के विरोध में खूब प्रदर्शन किया।
● 15 वर्षो बाद जब हिंदी को पुनः राष्ट्रभाषा स्वीकारने की बात आई तो फिर विरोध प्रदर्शन हुए और विरोध प्रदर्शन ने आत्मदाह तक का रूप ले लिया।
● इन सबके बीच ऑफीशियल लैंग्वेज एक्ट 1963 पारित हुआ जिसमें अंग्रेज़ी के साथ हिंदी को राजभाषा माना गया। तब से लेकर आज तक अंग्रेज़ी और हिंदी राजभाषा है।
4.) त्रि-भाषा फॉर्मूला-:
● तब मद्रास के मुख्यमंत्री हुआ करते थे एम भक्तवत्सल्म जो कांग्रेस के नेता थे।
● उन्होंने इसका एक रास्ता निकाला था जो त्रि-भाषा फॉर्मूला के रूप में सामने रखा।
● उन्होंने कहा कि राज्य में तीन भाषाओं का इस्तेमाल किया जाएगा हिंदी, अंग्रेज़ी और तमिल।
● राजनैतिक पार्टियों ने फिर वोट बैंक की राजनीती चालू की शौक़ दिवस मनाएं गए, आत्मदाह तक लोग आतुर हुए।
● नतीजा ये रहा की इसे फिर वापस ले लिया गया।
● इसके बाद 1983 में एक सरकारिया कमिशन बना उसने भी देश में त्रि-भाषा फॉर्मूले अपनाने की बात कही।
● कमीशन ने कहा कि स्कुल के स्तर पर तीन भाषा सिखाई जाएं हिंदी, अंग्रेज़ी या कोई एक विदेशी भाषा और तीसरी क्षेत्रीय भाषा हो।
● जिससे बच्चे दूसरे राज्यो को भी आसानी से समझ पाएंगे।
● इस कमीशन ने ये भी कहा था कि राज्य अपनीआधिकारिक भाषा चुन सकते है और सरकारी कार्यो में राज्यो को क्षेत्रीय भाषा के प्रयोग के अधिकार दिए गए।
● राजीव गांधी के समय प्रारंभ हुए नवोदय विद्यालय में ये फॉर्मूला लागू हुआ था।
● परन्तु दूसरे विद्यालय इसके लिए बाध्य नही है।
● यदि स्कुल से ही गैर हिंदी भाषी बच्चो को हिंदी और हिंदी भाषी बच्चो को एक गैर हिंदी भाषा सिखायी जाएं तो ये देश और एक दूसरे को करीब लेकर आ जाएगा।
● यदि त्रि-भाषा फॉर्मूला संपूर्ण देश में लागू हो तो आने वाली पीढ़ियां इस देश को एक राष्ट्रभाषा दे देगी।
(फोटो सोर्स-: प्रभासाक्षी)
5.) हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में क्यों स्वीकार किया जाएं-:
● जब भारत देश एक ऐसी भाषा जो अंग्रेज़ो द्वारा हम पर थोप दी गई को स्वीकार कर सकता है, तो हिंदी तो इस देश की भाषा है।
● हिंदी बोलने वालों की संख्या भारत में करीब 45% है जो भारत की संपूर्ण जनसंख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा है।
● हिंदी वह भाषा है जिसके साथ किसी भी भाषा के शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
● केंद्र सरकार को दक्षिण भारत में राज्यो में कार्य कर रही सरकारों और समस्त राजनैतिक दलों को भी साथ लेकर राष्ट्रभाषा के विषय पर विस्तार से चर्चा करनी चाहिए और लोगो को इस विश्वास में लेकर की उनकी क्षेत्रीय भाषाओं को कभी कोई नुकसान नही होगा एवं उत्तर भारतीयों को हिंदी के राष्ट्रभाषा बनने पर नोकरियो में उनका बोल-बाला नही होगा।
● हलाकि देश को त्रि-भाषा फॉर्मूले पर विचार करना होगा जिससे हम अपनी अनेकता में एकता की अवधारणा को ओर करीब ला सके।
● 14 सितम्बर 1949 से हिंदी देश की राजभाषा बनी इसलिए प्रत्येक 14 सितम्बर हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
● आजादी के बाद संविधान सभा द्वारा जिस तरह पर हिंदी के विषय पर तालमेल बैठाया गया वैसे ही तालमेल की आवश्यकता आज भी है। राजनैतिक दलों के नेताओ बड़ा दिल दिखाना इसके लिए आवश्यक है।
● दक्षिण भारतीय भाई- बहनों की आस्था का भी इस विषय में ध्यान रखा जाएं।
● आज भारत को महात्मा गांधी और सी राजगोपालाचार्य के विचारों पर आगे बढ़ हिंदी को अपना स्थान दिलाना चाहिए।
Interesting
ReplyDeleteWow sir amazing 😊
ReplyDeleteबेहतरीन जानकारी
ReplyDeleteGood knowledge
ReplyDeleteNo doubt great though by minded person... awesome work lovesh ji..👍👍
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