भारत रत्न प्रणब दा

● भारतीय राजनीति के एक महान युग का अंत 31 अगस्त 2020 को देश के पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी के देहांत के साथ हो गया।
● प्रणब दा कांग्रेस के उन वरिष्ठ नेता में से थे जो इंदिरा के समय की कांग्रेस के खास सिपाही थे।
● प्रणब दा की राजनीतिक महत्वकांक्षा से राजीव का वो दौर जिसमे उन्हे कांग्रेस से बर्खास्त किया और फिर राष्ट्रपति बनने के सफर की करेगे चर्चा।
● आइये जानते है देश के 13 वे महामहिम के जीवन के कुछ खास किस्से???

1.) प्रणब दा का जन्म एवं शिक्षा-:
● प्रणब दा का जन्म पश्चिम बंगाल के मिराती गाँव में 11 दिसंबर 1935 को हुआ था। 
● प्रणब का जन्म कामदा किंकर मुखर्जी और राजलक्ष्मी मुखर्जी के घर हुआ।
● उनके पिता एक स्वतंत्रता सेनानी थे और प्रणब ने अपने पिता को देश की सेवा करते हुए देखा। पिता का देश के प्रति समर्पण ने प्रणब को भी ये सीख दी कि उन्हे भी देश के प्रति सदैव समर्पित रहना है।
● उनका विवाह 13 जुलाई 1957 को शुभ्रा मुखर्जी के साथ हुआ था। शुभ्रा और प्रणब के दो बेटे और एक बेटी है।
● शुभ्रा मुखर्जी भी एक संगीतकार थी और प्रणब के राष्ट्रपति रहते ही उनका देहांत वर्ष 2015 में हो गया था।
● प्रणब को खुद भी संगीत सुनना का शौक था।
● कलकत्ता विश्वविद्यालय से प्रणब ने इतिहास और राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की और साथ साथ कानून की डिग्री हासिल की।



(फोटो सोर्स-: विकिपीडिया)

2.) मैंने कहा था कि हमने गाय खा ली-:
● प्रणब दा ने अपनी आत्मकथा में अपने बचपन का एक किस्सा बताया है।
● उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी थे और ब्रिटिश सरकार ने उन पर मुकदमा चलाया और आदेश दिया कि मुखर्जी परिवार की पूरी सम्पति जब्त कर दी जाएं।
● जब दारोगा कुर्की के लिए पहुँचा तब तक मुखर्जी परिवार ने अपने घर के सभी सामान को गाँव के लोगो के घर छिपा दिया।
● जब दारोगा घर पर गया तो वहाँ केवल प्रणब ही थे दारोगा ने प्रणब से पूछा " गाय कहाँ है??"
● प्रणब ने जवाब दिया "गाय तो हम खा गए।" दारोगा ने कहा तुम तो ब्राह्मण हो गाय कैसे खा गए?
● तो प्रणब मुस्कुराये और बोले अरे गाय को बैच दिया और जो रुपये आएं उसका राशन लेकर आएं और खा गए।

3.) इंदिरा की सत्ता वापसी और प्रणब की चाणक्य नीति-:
जब 80 के दशक में इंदिरा गांधी पुनः प्रधानमंत्री बनी तब प्रणब इंदिरा के बेहद विश्वासपात्रों में से एक थे।
● तब प्रणब मुखर्जी सिगार पिया करते थे। एक बार इंदिरा ने प्रणब के लिए मजाकिया अंदाज में कहा था कि "प्रणब के मुंह से पाइप का धुआं निकल सकता है पर मेरा और कांग्रेस का राज नही।" हालांकि बाद में प्रणब ने ध्रूमपान की आदत को छोड़ दिया।
● 1977 में जब मोरारजी देसाई देेेश के 
प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने 1954 से दिए जा रहे भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न और दूसरे नागरिक सम्मानों को ये कहकर देने से मना कर दिया की इन सभी पुरस्कारों में शिफारिश लगती है इसलिए ये पुरस्कार नही दिए जाने चाहिए। 1977 से 1980 तक किसी भी व्यक्ति को कोई नागरिक सम्मान नही दिया गया।
● जब इंदिरा ने पुनः 1980 में सत्ता में वापसी की तो उन्होंने देश में नागरिक सम्मान वापस देने की घोषणा की और इंदिरा की घोषणा के बाद देश का सर्वोच्च सम्मान किसे मिले??अब इस मुद्दे पर मंथन बाकि था।
● बहुत सोच विचार के बाद भी कांग्रेस तय नही कर पाई कि भारत रत्न किसे मिलना चाहिए??
● अब 26 जनवरी आने में समय कम बचा था और अभी तक भारत रत्न किसे दिया जाए इसका फैसला नही हो पाया था।
● इंदिरा ने ये जिम्मेदारी दी अपने सबसे विश्वासपात्र सिपाही प्रणब मुखर्जी को, प्रणब दा ने बहुत सोच-विचार कर मेडम इंदिरा को नाम बताया "मदर टेरेसा" का, इंदिरा नाम सुनकर खुश हुई।
● अब पता लगाना था कि क्या किसी विदेशी को भारत रत्न दिया जा सकता है क्योंकि इससे पहले किसी विदेशी को भारत रत्न का सम्मान नही मिला था।
● खान अब्दुल गफ्फार खाँ जिन्हे भारत रत्न का सम्मान मिला उनका जन्म भारत में ही हुआ था।
● प्रणब ने अधिकारियो को आदेश दिए पता लगाया जाएं की क्या मदर टेरेसा को भारत की नागरिकता प्राप्त हो चुकी है??
● अधिकारियो द्वारा पता लगाया जाता है और प्रणब को फोन कर बताया जाता है कि मदर टेरेसा भारतीय नागरिक है, फ़ोन के उस पार प्रणब को कहा जाता है कि हम उनको पदम भूषण देना चाहते है और प्रणब मुस्कुराकर कहते है कि उसके लिए आप कोई और नाम देख ले      " इनका नाम भारत रत्न के लिए दिया जा रहा है।"
● प्रणब दा की कार्यशैली सच में अद्भुत थी शायद इसलिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता उन्हे  "संकटमोचन" कहते थे।
(फोटो सोर्स-:विकिपीडिया)

4.) राजीव गांधी और प्रणब दा के रिश्ते-:
1984 का वो दिन जब देेेश की पूर्व 
प्रधानमंत्री का निधन हुआ। तब राजीव और प्रणब दा एक रैली में साथ ही थे।
● प्रणब बड़े स्पष्ट शब्दों में अपनी बात रखने पर यकीन करते थे और अपने राजनीतिक जीवन में उनके सम्बन्ध अन्य राजनैतिक दलों के नेताओ के साथ भी अच्छे रहे।
● इंदिरा के देहांत की खबर सुनकर जब राजीव और प्रणब प्लेन में वापस आ रहे थे तो अपने सबसे वरिष्ठ मंत्री से राजीव ने पूछा अब ऐसे समय में क्या कर सकते है??
● तो प्रणब ने बड़े ही स्पष्ट और बिना किसी हिचक के साथ कहा कि देखो परम्परा तो ये है कि सबसे वरिष्ठ नेता को देश का प्रधानमंत्री बना दिया जाना चाहिए। तब कांग्रेस में इंदिरा के बाद वरिष्ठ नेता वही थे।
● बाद में राजीव गांधी स्वयं देश के प्रधानमंत्री बने और राजीव के सहयोगियों द्वारा यह कहा गया कि प्रणब की राजनीतिक महत्वकांक्षा देश का प्रधानमंत्री बनने की है तब राजीव द्वारा पहले उन्हे मंत्रिमंडल से और फिर कांग्रेस से बर्खास्त किया गया था।
● कहते है कांग्रेस से उनका बर्खास्त होना उनके जीवन का कठिन समय था।
(फोटो सोर्स-: विकिपीडिया)

5.प्रणब दा का नया राजनैतिक दल-:

● प्रणब दा को जब मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया गया तो उन्होंने यह कहकर चुप्पी साध ली कि पश्चिम बंगाल के एक और वरिष्ठ नेता ए बी घनी खा चौधरी को भी मंत्रिमंडल से ड्रोप किया गया है।
● चौधरी को पुनः 1 वर्ष बाद मंत्रिमंडल में जगह मिल गई। प्रणब को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया पर यह पद भी उनसे जल्द ही छीन लिया गया।
● प्रणब ने शायद ही कभी ऐसा सोचा होगा पर पहली बार उन्हे कांग्रेस वर्किंग कमिटी और कांग्रेस पार्लियामेंट्री बोर्ड से भी निकाल दिया गया।
● इसके बाद प्रणब के सब्र का बांध टूटा और उन्होंने एक अख़बार को दिए साक्षात्कार में इंदिरा और राजीव के नेतृत्व की तुलना के प्रश्न का उत्तर बड़ी स्पष्टता से दिया।
● राजीव को ये बात पसन्द नही आयी और प्रणब जब यूपी के एक कांग्रेस नेता कमला पन्त त्रिपाठी के घर बैठे थे तो त्रिपाठी की बहू द्वारा उन्हे ये बताया गया कि आपको कांग्रेस से निकाल दिया गया है।
● प्रणब चुप रहे और कुछ महीने बाद अपना एक नया दल बनाया जिसका नाम रखा "राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस  दल"।
● सभी को लगा कि कांग्रेस से अलग ये नया दल मजबूत होगा कांग्रेस के कही बड़े नेता इस दल में शामिल हुए।
● अब प्रणब को इन्तज़ार था पश्चिम बंगाल चुनाव का,चुनाव आएं और नतीजे घोषित हुए और राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस को एक भी सीट नही मिली।
● धीरे धीरे कर प्रणब का साथ सब नेताओ ने छोड़ और प्रणब अपने कार्यालय में अकेले बैठे पाइप पीया करते थे।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की राजनैतिक पारी के प्रथम अध्याय को जाना अब दूसरे अध्याय को पढ़ेगे अगले ब्लॉग में।

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