"हल्दीघाटी संग्रहालय" जो आज भी अनुभूति करवाता है वीर महाराणा प्रताप के शौर्य की।

 भारत के इतिहास में यदि प्रमुख युद्धों की बात की जाएं तो बात होगी " हल्दीघाटी युद्ध"की।
● राजस्थान के उदयपुर जिले से 40 किलोमीटर दूर स्थित है "हल्दीघाटी दर्रा" जो इतिहास में प्रसिद्ध है वीर प्रताप और अकबर की सेना के बीच हुए युद्ध के लिए।
● इस युद्ध की यादों और वीर प्रताप के संघर्ष को आज भी जीवीत रखे हुए "हल्दीघाटी संग्रहालय"। जो इतिहास में हुई घटनाओं के वास्तविक दृश्यों को आज भी संजोये हुए है।

1.) स्थापना-:
● 19 जनवरी 2003 को तत्कालीन राज्यपाल मोहदय अंशुमान सिंह द्वारा "हल्दीघाटी संग्रहालय "की स्थापना की गई। 
● "हल्दीघाटी संग्रहालय" सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण का एक बहुत बढ़ा उदाहरण है।
● हल्दीघाटी संग्रहालय के संस्थापक श्री मोहनलाल जी श्रीमाली है जिनके प्रयासो ने आज भी इतिहास के दृश्यों को वास्तविक रूप में जीवित रखा है।
● उदयपुर एवं राजसमन्द जिलों के बीच गाँव बलीचा में "हल्दीघाटी संग्रहालय" स्थित है। इससे कुछ ही दूर वीर महाराणा प्रताप के घोड़े "चेतक" की समाधि है।
● "हल्दीघाटी संग्रहालय" ने हल्दीघाटी स्थल के महान इतिहास को वर्तमान पीढ़ी से साक्षात् करवाया है।

2.) हल्दीघाटी स्थल का इतिहास-:
भारत के इतिहास में यदि चर्चित युद्धों की बात की जाएं तो बात होगी " हल्दीघाटी युद्ध"।
● 18 जून 1576 को हल्दीघाटी युद्ध की भेरी बजी।
● ये युद्ध वीर महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के मध्य हुआ। अकबर की सेना का नेतृत्व मानसिंह कर रहा था, ये पहला मौका था कि जब मुग़ल सेना का नेतृत्व कोई राजपूत राजा कर रहा था।
● कहते है कि प्रताप की सेना का पहला वार इतना जोशीला था कि मुग़ल सैनिक चारो और जान बचाकर भाग गए।
● मुगलो की आरक्षित फ़ौज के प्रभारी " मिहत्तर खाँ" ने यह झूठी अफवाह फैला दी की " बादशाह अकबर स्वयं शाही सेना लेकर आ गए है।"
● बादशाह अकबर की बात सुन मुग़ल सेना खमनोर के निकट रक्त तलाई में आ जमी।
● मुगलो की सेना के वार से प्रताप की सेना में निराशा छाने लगी। तभी प्रताप मुग़ल सेना को चीरते हुए मानसिंह की और बढ़े। मानसिंह अपने हाथी " मर्दाना" पर बैठा था।
● राणा के चेतक( घोड़े) ने मानसिंह के हाथी पर अगले दो पैर रखे तथा प्रताप ने अपने भाले का वार किया जो मानसिंह के हाथी पर बैठे महावत  ( हाथी चलाने वाला)  शरीर को पार कर हौदे को पार गया, मानसिंह हौदे में छुप गया।
● तभी महावत विहीन हाथी की सूंड में छिपी तलवार से चेतक का एक पैर कट गया।
● चेतक का पैर कटने से प्रताप को शत्रु सेना ने घेर लिया। लेकिन अपनी शक्ति का अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए मुग़ल सेना में उपस्थित पठान बहलोल खाँ के वार का ऐसा प्रतिकार किया कि खान के जिरह बख्तर सहित उसके घोड़े के दो फाड़ हो गए।
● चेतक के घायल होने से महाराणा के साथ युद्ध में शामिल सभी साथियों ने कहा कि मेवाड़ को आपकी आवश्यकता है और आपका रहना 
ही मेवाड़ का सुरक्षित रहना है।
● बहुत समझाने के बाद राणा ने युद्ध भूमि को छोड़ा एवं राणा के स्थान पर झाला बीदा ने राणा के सिर का छत्र धारण किया। 
● घायल चेतक अपने स्वामी को युद्ध क्षेत्र से बाहर ले गया। चेतक की स्वामिभक्ति आज भी विश्व विख्यात है। युद्ध क्षेत्र से थोड़ी दूरी पर गाँव बलीचा में आज भी चेतक की समाधि उपस्थित है।
● इस युद्घ के परिणाम के बारे बहुत से मत है परंतु इस युद्ध ने स्वाभिमान की मिसाल पेश की जो आज की पीढ़ी को अभिप्रेरित और गौरान्वित महसूस करवाता है।
● प्रताप की शक्ति का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि बादशाह अकबर स्वयं इस युद्ध का हिस्सा नही था।
● "हल्दीघाटी संग्रहालय" आज भी इस युद्ध और प्रताप के संघर्षो की कहानी आज की पीढ़ी के सामने जीवित दृश्यों के रूप रखता है।

(फोटो सोर्स-: विकिपीडिया)

3.) हल्दीघाटी संग्रहालय की प्रमुख विशेषता-:
● मेवाड़ का राजचिन्ह, पन्नाधाय का बलिदान, गुफा में मंत्रियो से मन्त्रणा के दृश्य दिखाएं जाते है।
● प्रताप के जंगलों में किये संघर्षो के बारे बताया जाता है तथा एक दृश्य ये भी दिखाया जाता है कि जिसमे प्रताप शेर से युद्ध कर रहे है।
● एक शॉर्ट फिल्म(एनीमेशन फिल्म) दिखाई जाती है जिससे मेवाड़ के इतिहास के बारे में तथा प्रताप का जीवन परिचय दिखाया जाता है।
● हल्दीघाटी युद्ध का एक मॉडल दिखाया जाता है जिससे युद्ध के स्थान एवं मुग़ल और राजपूत सेना की शक्ति और संख्याबल के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
● मानसिंह और प्रताप का युद्ध क्षेत्र में आमने -सामने होने वाले दृश्य हमे युद्ध के मैदान की अनुभूति करवाता है।
● सबसे भावुक करने वाला दृश्य घायल चेतक को प्रताप द्वारा अंतिम विदाई देना है और ये दृश्य संग्रहालय छोड़ देने के पश्चात भी आपकी आँखों में बना रहेगा।
(फोटो सोर्स-: विकिपीडिया)
● वनवासी प्रताप के जीवन के संघर्षो की कहानी यहाँ मॉडल,चित्रों और झांकियों के रूप में प्रदर्शित की जाती है।
● भारतीय संसद में स्थापित प्रताप की झांकी की प्रतिमूर्ति विद्यमान है।
● महाराणा कुम्भा, महाराणा संग्रामसिंह, महाराणा अमरसिंह, मीरा बाई और बप्पा रावल के  पोर्ट्रेट प्रदर्शित किए गए है।
● गाँवो की लुप्त होती परम्पराओ को भी ये संग्रहालय एक सुंदर मॉडल और चित्र रूप में दर्शाता है जैसे प्राचीन कुएँ, रहट, कृषि यंत्र,बैलगाड़ी और रथ आदि।
● यहाँ एक प्राकृतिक झील का भी निर्माण किया गया। यहाँ आने वाले सैलानियों द्वारा बोटिंग का लुफ्त उठाया जाता है।
● एक पहाड़ी पर महाराणा प्रताप स्मारक भी दर्शनीय है।
● यहाँ आस-पास के क्षेत्रो में गुलाबो की खेती की जाती है जो अपने खेत के गुलाबो को संग्रहालय में बेचते है जहाँ गुलाब जल का निर्माण होता है। हल्दीघाटी शुद्ध गुलाब जल के लिए भी प्रसिद्ध है।
● यहाँ आने वाले पर्यटकों के लिए इस स्थान की पीली मिट्टी भी दर्शनीय है पर्यटकों द्वारा यहाँ की मिट्टी को साथ में लेकर जाना इस स्थान की विशेषता दिखाता है। 
● अरावली पर्वत श्रृंखला से घिरा सकड़ा मार्ग और यहाँ का प्राकृतिक परिदृश्य भी पर्यटको का दिल जीत लेता है। 
● हल्दीघाटी संग्रहालय,आज यहाँ आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है।
(फोटो सोर्स-: विकिपीडिया)

4.) संस्थापक श्री मोहनलाल जी श्रीमाली का परिचय-:
● हल्दीघाटी संग्रहालय के संस्थापक श्री मोहनलाल जी श्रीमाली है।
● संग्रहालय स्थापना के पीछे उनके जीवन में आए संघर्ष और उनका साहस वास्तव में आज की युवा पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा है।
● मोहनलाल जी श्रीमाली मूल रूप से हल्दीघाटी के निकट बलीचा गाँव के ही निवासी है।
● बचपन से ही उन्होंने वीर प्रताप की कहानियां और हल्दीघाटी के इतिहास की कहानियां सुनी जो उनके दिलो-दिमाग में बस गई।
● आर्थिक परिस्थितियों का सामना कर उन्होंने बीएड डिग्री प्राप्त की।
● बीएड के बाद उन्होंने सरकारी विद्यालय में अध्यापक के रूप कार्य किया।
                श्री मोहनलाल जी श्रीमाली
(फोटो सोर्स-: विकिपीडिया)
● अध्यापक पद पर रहते हुए भी उन्होंने अपने सपने को पूर्ण करने की इच्छा को नही त्यागा।
● अध्यापक की नोकरी से भी वे एक अच्छा जीवन बीता सकते थे पर उन्होंने अपने जीवन में एक ऐसा मार्ग चुना जो की उनके जीवन को कठिन भी बना सकता था पर कहते है कि 
 "जिनके होंसले बुलंद होते है उन्हे कोई नही रोक सकता"।
● उन्होंने निर्णय लिया कि अब वो अध्यापक की नोकरी से स्वैच्छिक सेवानिवृति ले लेगे।
● वीआरस लेने के बाद जो भी रुपये और अपनी बचतों को संग्रहालय के निर्माण में लगा दिया।
● रुपयों की कमी पर उन्होंने पुश्तेनी जमीन, मकान और जेवर एवं अपनी पूरी पूंजी संग्रहालय में लगा दी।
● धीरे धीरे जब परिस्थतियां अनुकूल होने लगी तो बैंकों से ऋण सुविधा भी उपलब्ध हुई।
● संग्रहालय स्थापना के लिए जमीन भी स्वयं ही खरीदी।
● संग्रहालय जब स्थापित हुआ और पर्यटकों का तांता लगने लगा तब मोहनलाल जी श्रीमाली के इस कार्य की सराहना होने लगी और तब लोगो ने उनकी दूर दृष्टि और भविष्योमुखी योजना का विशाल रूप देखा।
आज यहाँ लाखो पर्यटक घूमने आते है जो हल्दीघाटी की इतिहास और संग्रहालय की खूबसूरती को भारत और विश्व के किसी क्षेत्र तक पंहुचाते है। 




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