राष्ट्रपति जिनका निर्वाचन द्वितीय वरीयता की मतगणना के आधार पर हुआ।

● भारत के इतिहास में एक मात्र राष्ट्रपति जो बिना किसी राजनैतिक दल के समर्थन के राष्ट्रपति का पर्चा दाखिल किया और परिणाम ये रहा की आज उन्हे भारत के प्रथम निर्दलीय राष्ट्रपति के रूप में जाना जाता है।
● साल 1969, बारी थी चौथे राष्ट्रपति चुनाव की,चुनाव के परिणाम से प्रारंभ हुआ कांग्रेस में "इंदिरा युग"।
● हम बात कर रहे है देश के चौथे महामहिम "वी. वी. गिरी"।


                   
 देश के चौथे राष्ट्रपति वी वी गिरी जी (फोटो सोर्स:विकिपीडिया)
1.कांग्रेस की 10 जुलाई 1969 की संसदीय दल की बैठक
10 जुलाई 1969 को कांग्रेस की बैंगलोर में हो रही बैठक में इंदिरा ने कांग्रेस के राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार के रूप में जगजीवन राम का नाम आगे बढ़ाया.उन्होंने दलील दी कि महात्मा गांधी के शताब्दी वर्ष एक दलित को राष्ट्रपति के तौर पर चुनना, महात्मा को सच्ची श्रद्धांजलि होगी और इससे सामाजिक समावेशीकरण के प्रति पार्टी की प्रतिबद्धता भी साबित होगी। लेकिन वे संख्याबल में पिछड़ गई और उन्हे नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में स्वीकार करना पड़ा।

2.इंदिरा और कांग्रेस ओल्ड गार्डस
तब की कांग्रेस में पार्टी के ओल्ड गार्डस कोई भी इंदिरा को बतौर प्रधानमंत्री नही देखना चाहते थे।
के.कामराज, एस निजलिंगप्पा, मोरारजी देसाई, अतुल्य घोष और नीलम संजीव रेड्डी ये सभी इंदिरा विरोधी गुट का हिस्सा थे। इंदिरा को बुरा तब लग गया जब के.कामराज ने ये कह दिया की "इंदिरा जी आप चाहे तो पार्टी आपको राष्ट्रपति उम्मीदवार बना सकती है।" इंदिरा समझ गई की पार्टी ओल्ड गार्डस उनका राजनैतिक वनवास चाहते है और दिल्ली आकर इंदिरा ने लिखी सबसे रोमांचक राष्ट्रपति चुनाव की कहानी।

3.वी. वी गिरी का अपने कार्यकाल से पूर्व इस्तीफा देना।
जाकिर हुसैन के राष्ट्रपति पद पर रहते हुए ही उनकी मृत्यु हो जाने से देश के उपराष्ट्रपति वराहगिरी वेंकटगिरी कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहे थे। पर्चा दाखिल करने की आखरी दिनांक के 1-2 दिन पूर्व ही वी वी गिरी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और बतौर निर्दलीय उम्मीदवार राष्ट्रपति का पर्चा दाखिल कर दिया।

4. वी.वी.गिरी का बतौर इंदिरा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ना।
गिरी का पद से इस्तीफा देना और चुनाव लड़ना कांग्रेस ओल्ड गार्डस समझ गए की ये इंदिरा की ही कोई चाल है अब राष्ट्रपति का चुनाव त्रिकोणीय मुकाबले की और बढ़ रहा था तत्कालीन विपक्ष के रूप रही पार्टी जनसंघ की और से बतौर उम्मीदवार सी.डी देशमुख थे। कांग्रेस ओल्ड गार्डस ने इंदिरा की इस चाल को नाकाम करने के लिए विपक्ष का दरवाजा खट-खटाया और विपक्ष से मिलकर उन्हे ये कहा कि पहली वरीयता का वोट आप अपने ही उम्मीदवार को करे पर द्वितीय वरीयता का वोट आप नीलम संजीव रेड्डी को करे। प्रधानमंत्री इंदिरा के विपक्ष में हुए तब के कुछ दोस्तों ने उन तक ये बात पंहुचा दी। अब इंदिरा को पता था कि ये राष्ट्रपति चुनाव उनका राजनैतिक भविष्य तय करेगा।


                     

 पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी और पूर्व राष्ट्रपति वी वी गिरी जी
 (फोटो सोर्स:विकिपीडिया)

15 अगस्त 1969 लाल किले की प्राचीर से इंदिरा जी का भाषण
कांग्रेस के ओल्ड गार्डस की चाल को नाकाम करने के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा जी लाल किले की प्राचीर से कहा"इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में वोट करने से पहले अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर वोट करे।" इंदिरा समर्थन में रहे पार्टी के तब के विधायक और सांसद समझ गए की इंदिरा के बयान के क्या मायने है और फिर परिणाम का वो दिन 24 अगस्त 1969 कुल वोट पड़े थे 8,36,337 और जीत के लिए चाहिए थे 4,18,169 वोट की आवश्यकता थी पहली वरीयता की गणना में गिरी को 4,01,515 और रेड्डी को 3,13,548 अभी किसी ने भी जीत के जादुई आंकड़े को नही छुआ था और बारी थी द्वितीय वरीयता की मतगणना की कांग्रेस के ओल्ड गार्ड समझ रहे थे की अब जीत उन्हे मिल जाएंगी पर जब द्वितीय वरीयता की गणना पूरी हुई तो गिरी के वोटों का आंकड़ा 4,20,077 पहुँच गया और रेड्डी के वोटो का आंकड़ा केवल 4,05,427 था वी. वी. गिरी ने जीत के उस आंकड़े को पार कर देश के चौथे राष्ट्रपति के रूप शपथ ली। इसके बाद इंदिरा को पार्टी ने बर्खास्त कर दिया और कांग्रेस दो भागों में बंट गई कांग्रेस R(रिकविजेशनल) इंदिरा समर्थित और कांग्रेस O( आर्गेनाईजेशन) ओल्ड गार्डस समर्थित। लेकिन अब इंदिरा युग का प्रारंभ हो गया था और धीरे धीरे कर इंदिरा ने अपने सब राजनैतिक विरोधियो को दरकिनार कर दिया।


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